Mahatma Gandhi Bio: देश के नोट से लेकर देश के हर नागरिक के दिलो मे बसने वाले इस महान व्यक्ति को हर कोई जानता है। इनकि जितनी तारीफ कि जाये उतनी ही कम है क्योकि इनकी उपलब्धी शब्दो मे बयां करना कुछ हद तक नामुमकिन है। हम बात कर रहे है मोहनदास करमचंद गांधी जी के बारे मे, देश को आजाद कराने वाले देश के सबसे बडे नायक है। वैसे तो पुरे देश को इन किये गये हर महान कारनामो के बारे मे जानकारी है लेकिन आज इनके कुछ अलग और रोचक तथ्यो के बारे मे जानेंगे। आज इस आर्टिकल मे आप जानेंगे महात्मा गांधी के बारे मे।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) जीवन परिचय
मोहनदास करमचंद गांधी जी का जन्म 2 अक्टुबर 1869 को गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर मे हुआ था। मोहनदास के पिता का नाम करमचंद गांधी है और माता का नाम पुतलीबाई था, इनके पिताजी ब्रिटीश राज के एक छोटी से रियासत मे दिवान(प्रधानमंत्री) थे। मोहनदास जी कि शादी बचपन मे ही हो गयी थी, करीब 13 साल के उम्र मे साल 1883 मे कस्तुरबा गांदी से हुय़ी थी। हांलाकी ये बाल विवाह था लेकिन ये उस समय प्रचलित थी और इसके कुछ नियम थे। मोहनदास बाल उम्र से ही शिक्षा मे बेहतर है, करीब 19 साल के उम्र मे मोहनदास बैरीस्टर बनने के लिए लंदन चले गये थे।
मोहनदास जी के साथ साउथ अफ्रिका मे कहानी आरम्भ मे उन्हे प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के लिए ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। इतना ही नही पायदान पर शेष यात्रा करते हुए एक यूरोपियन यात्री के अन्दर आने पर चालक की मार भी झेलनी पड़ी। अफ्रीका में कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं में से एक यह भी थी जिसमें अदालत के न्यायधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसे उन्होंने नही माना। ऐसे और भी कई किस्से है इनकि जींदगी से जुडे हुए जो हमे ये बताती है कि जींदगी कई ऐसे पल होते है जहां आपको मजबुती से खडा होना होता है। इस बात से आहत होकर मोहनदास ने दक्षिण अफ्रिका को अपने बारे मे बताने के कवायद मे लग गये। इस बिच गांधी जी भारत आये और उन्हे अपने देश के जनता के हाथो मे गुलामी की बेडीयां दिखा।
भारत मे स्वतंत्रता संग्राम मे संघर्ष
गांधी जी महात्मा बनने कि रह पर चल पडे थे, अंग्रेजो के हर गलत नियम का खुल कर विरोध किया है और जरुरत पडने पर आंदोलन से लेकर अंग्रेजो कि लाठीयां भी खई है।
चंपारण और खेडा
साल 1918 मे ही गांधी जी को अपने पहली उपलब्धी मिली चंपारण सत्याग्रह और खेडा सत्याग्रह अपने निर्वाह के लिए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए नील नकद पैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती वाले आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे।
असहयोग आंदोलन
गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ अपना शस्त्र बना लिया था, पंजाब मे अंग्रेजी सैनिको के द्वारा जलियांवाल बाग हत्याकांड जिसके बाद पुरे देश कि जनता मे आक्रोश भरा हुआ था। गांधी जी ने ब्रिटीश राज के रवैयों पर तथा भारतीयों द्वारा प्रतिकारात्मक रवैया दोनों की की। उन्होंने ब्रिटिश नागरिकों तथा दंगों के शिकार लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की तथा पार्टी के आरम्भिक विरोध के बाद दंगों की भंर्त्सना की। गांधी जी के भावनात्मक भाषण के बाद अपने सिद्धांत की वकालत की कि सभी हिंसा और बुराई को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है।
स्वराज और नमक सत्याग्रह
गांधी जी सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे और 1920 की अधिकांश अवधि तक वे स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच खाई को भरने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त वे अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ आंदोलन छेड़ते भी रहे। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भेजा। लार्ड एडवर्ड इरविन द्वारा प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श करने का निर्णय लिया। इस इरविन गांधी की संधी साल 1931 मार्च को हुआ था, सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए अपनी रजामन्दी दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमन्त्रीत किया गया।
भारत छोडो आंदोलन
साल 1939 व्दितीय विश्व युध्द के शुरु होने के साथ गांधी जी ने अंग्रेजों के प्रयासों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया किंतु दूसरे कांग्रेस के नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना इसमें एकतरफा शामिल किए जाने का विरोध किया। कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लंबी चर्चा के बाद, गांधी ने घोषणा की कि जब स्वयं भारत को आजादी से इंकार किया गया हो तब लोकतांत्रिक आजादी के लिए बाहर से लड़ने पर भारत किसी भी युद्ध के लिए पार्टी नहीं बनेगी। जैसे जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी ने आजादी के लिए अपनी मांग को भारत छोडो नामक विधेयक को देकर तेज किया।